घर की इज्जत
कैसे महफूज़ रखूँ
अपने घर की इज्ज़त
हर तरफ वहशी दरिंदो का साया हैं
रखते हैं गढ़ाये हरवक्त
गिद्ध सी नज़रे
मेरे घर आँगन में
जैसे बोटी नोचने का उन्हें
निमंत्रण भिजवाया हैं
ताक पर रख दी इंसानियत
हैवानियत का मंज़र
उनकी आँखों में नज़र आया हैं
घर से निकलना
दूभर हो गया बेटियों का
हर माता-पिता सोचे
ये नराधम किस कोख का जाया हैं
क्यूँ बदल गयी सोच
आज के नौजवानों की
क्या हवस को ही
उन्होंने अपना मकसद बनाया हैं
चिंतित हैं हर घर आँगन
ऐसा बबुल का पेड़ कहीं
मेरे घर आँगन तो नहीं उग आया हैं
जीतेन्द्र सिंह "नील"
कैसे महफूज़ रखूँ
अपने घर की इज्ज़त
हर तरफ वहशी दरिंदो का साया हैं
रखते हैं गढ़ाये हरवक्त
गिद्ध सी नज़रे
मेरे घर आँगन में
जैसे बोटी नोचने का उन्हें
निमंत्रण भिजवाया हैं
ताक पर रख दी इंसानियत
हैवानियत का मंज़र
उनकी आँखों में नज़र आया हैं
घर से निकलना
दूभर हो गया बेटियों का
हर माता-पिता सोचे
ये नराधम किस कोख का जाया हैं
क्यूँ बदल गयी सोच
आज के नौजवानों की
क्या हवस को ही
उन्होंने अपना मकसद बनाया हैं
चिंतित हैं हर घर आँगन
ऐसा बबुल का पेड़ कहीं
मेरे घर आँगन तो नहीं उग आया हैं
जीतेन्द्र सिंह "नील"
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