Friday 13 December 2013

इक आँसू



इक  आँसू

इक  आँसू के पीछे
जाने कितनी कहानी छूपी हैं
जाने कितने फ़साने छुपे हैं
सुनाने बैठू तुम्हे तो
जिंदगी बीत जायेगी मेरी
दिल के ज़ख्म  प्यार की बाते
कांटो से छलनी  फूलो का बदन
बहुत हैं सुनाने को बताने को
पर तुम , तुम्हे  फुर्सत नहीं
मेरी बाते सुनने  समझने की
जाने तुम आजकल
किसके खयालो में खोई  रहती हो
कुछ बुझी बुझी सी
कुछ खोई खोई सी
तुम्हारी प्रीत अब लगती पराई सी
कैसे सुनाऊ तुम्हे
अपने ज़ज्बात ये अहसास
तुम्हारे कानो में आजकल
जाने किसका नाम गूंजता रहता हैं
और मैं , मैं पागल
तुम्हारे प्यार में दीवाना हुआ जा रहा
तुमसे प्रीत बढ़ाये  जा रहा
तुम , तुम तो पास होकर भी
दूर जा रही हो मुझसे
और प्यार , प्यार तो अब
अपने दिलो में
नफ़रत की तरह पनप रहा
जाने ये प्यार की जगह
नफ़रत की नागफनी  कैसे उग आई
हमारे दिलो में
प्यार दो आत्मा का मिलन हैं
दो दिलो का संगम हैं
तो  ये दिलो के बीच दिवार कैसी
ये परदा कैसा
प्यार शाश्वत हैं प्यार अमर हैं
आओ हम अपने प्यार को
एक नाम एक पहचान दे
दोनों बस जाए एक दूजे दिल में
धड़कन बनकर
आओ समझे एक दूजे को
मैं और तू को छोड़कर
हम बन जाए
इक आँसू तेरा गिरे तो
मेरी पलक भीग जाए
एक आँसु  मेरा गिरे तो
तेरा दिल भर आये
सुनने  सुनाने को हमारे  पास
प्यार की बाते हो बस
प्यार ही प्यार हो हमारे बीच


जीतेन्द्र सिंह "नील"

Wednesday 11 December 2013

वो एक नाम

 
 
 वो एक नाम


"नील"
यही नाम दिया था मैंने उसे
जब हम पहली बार मिले थे
वह मुझे जीत कहकर पुकारती थी
दोनों अपने नए नाम से बहुत खुश थे
हम जब भी अपना नाम
साथ में लिखते तो
नीलजीत ही लिखते थे  
कितना प्यार था हम दोनों में
जबसे मिले थे कभी भी इक पल के लिए
इकदूजे  के दिल से दूर नही हुए
दिन महीने गुजरते गये
हम प्यार की डोर को मजबूत करते गये
और एक दिन विवाह-बंधन में बंध गये
हमारी प्रीत में भी प्रगाड़ता आती गयी
हमारी प्यारी की बगियाँ में दो फूल खिले
धीरे धीरे हम साथ मिलकर
हँसी-ख़ुशी इसे सींच रहे थे
कुछ ही वर्ष बीते थे कि
अचानक एक ऐसी आँधी आई
नील को जीत को से जुदा कर गयी
नीलजीत का नाम अब
एक याद बनकर रह गया था
जीत की जिंदगी में
नील जाने किस दुनिया में खो गयी
जीत को अकेला छोड़कर
आज जीत जी तो रहा हैं पर
वह अपने प्यार को भूल नही पाया
उस प्यार को जिन्दा रखने के लिए उसने
आज खुद की पहचान
नील के नाम से बना ली
और उसके प्यार को अपने दिल में
सदा के लिए नील नाम से अमर कर दिया ।

जीतेन्द्र सिंह "नील"

Thursday 5 December 2013

जूठन की दावत



जूठन की दावत

बहुत दिनों बाद
आज मेरे लिए थी दावत
किसी ने जूठन में
बहुत सा खाना फिकवाया
मैं भी बावला
खाने की चाह में
नंगे पाँव फटे कपड़ो में ही
दौड़ा चला आया
बहुत दिनों से
भूख थी अतृप्त
देख इतना खाना एक साथ
हो गयी संतृप्त
बिना एक पल गँवाए मैंने
खाने पर अपना अधिकार जमाया
क्या होती हैं भूख
तुम क्या जानो
फटेहाल जिंदगी को मैंने
अपने पागलपन से छिपाया
आज इतना खाना देख
रह नही पाया
भूल गया सब जिंदगी के दुःख
जब सामने खाना आया
किसका शुक्रियाँ करूँ
उस रब का
जिसके कारण ऐसा जीवन मिला
या उस मेहरबान का
जिसके कारण आज
भरपेट खाना मिला |

जीतेन्द्र सिंह "नील"

Wednesday 4 December 2013

परछाई



परछाई 

आज मुद्दतो बाद 
मुझसे मेरी परछाई मिली 
कुछ सोच में डूबी 
कुछ घबराई सी 
अपने अतीत को 
मुझसे छुपाती हुई 
कुछ कहने की कोशिश कर रही थी 
कहती भी कैसे वह 
शब्द नहीं थे उसके पास
परछाई थी ना वह 
अपने हाव भाव से 
अपने मन की व्यथा 
मुझसे कहने लगी 
वह नादान
इतना भी नहीं जानती कि
वह मेरी परछाई हैं
उसका दुःख दर्द मेरा ही तो हैं 
वह अंधेरो में छुपकर 
यही सोचती रहती हैं
मुझसे अपने दिल के राज 
छुपाकर रख लेगी 
क्या यह संभव हैं मैंने उससे पूछा 
दिन के उजाले में तो उसे 
सबके सामने आना ही होगा 
तब क्या होगा 
कैसे करेगी जग का सामना 
यही सोचकर वह 
फिर गुमनामी के अंधेरो में खो गई | 

जीतेन्द्र सिंह "नील"

Friday 1 November 2013

एक दीप जलाया हैं




एक दीप जलाया हैं 
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ऐ हवा 
जरा अपना रुख बदल 
मन के अँधियारे से 
लड़ने को 
मैंने साहस का 
एक दीप जलाया हैं 

ऐ हवा 
जरा अपना रुख बदल 
निराशाओं को मिटाने 
मैंने आशाओं का 
एक दीप जलाया हैं 

ऐ हवा 
जरा अपना रुख बदल 
अविश्वास को मिटाने 
मैंने विश्वास का 
एक दीप जलाया हैं 

ऐ हवा 
जरा अपना रुख बदल 
बुराई को मिटाने 
मन में अच्छाई का 
एक दीप जलाया हैं 


जीतेन्द्र सिंह "नील"

Saturday 5 October 2013

नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ


नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ

हे आध्यशक्ति नवदुर्गा माता,
तेरे नाम से ही तमस मिट जाता ।

हे कष्टनिवारिणी मोक्षदायिनी माता,
तेरे नाम से ही जग भवसागर तर जाता ।

हे अष्टभुजाधारी जग कल्याणी माता,
तेरे दर से कोई खाली हाथ नही जाता ।

हे अम्बे अम्बालिका अम्बिका माता,
तेरे नाम को संसार निशदिन ध्याता ।

हे जगतारिणी शिव अर्धांगिनी माता,
रखना लाज हम बच्चों की तू ही हमारी भाग्यविधाता ।

जीतेन्द्र सिंह "नील"

Wednesday 2 October 2013

घर की इज्जत



घर की इज्जत

कैसे महफूज़ रखूँ
अपने घर की इज्ज़त
हर तरफ वहशी दरिंदो का साया हैं
रखते हैं गढ़ाये हरवक्त
गिद्ध सी नज़रे
मेरे घर आँगन में
जैसे बोटी नोचने का उन्हें
निमंत्रण भिजवाया हैं
ताक पर रख दी इंसानियत
हैवानियत का मंज़र
उनकी आँखों में नज़र आया हैं
घर से निकलना
दूभर हो गया बेटियों का
हर माता-पिता सोचे
ये नराधम किस कोख का जाया हैं
क्यूँ बदल गयी सोच
आज के नौजवानों की
क्या हवस को ही
उन्होंने अपना मकसद बनाया हैं
चिंतित हैं हर घर आँगन
ऐसा बबुल का पेड़ कहीं
मेरे घर आँगन तो नहीं उग आया हैं

जीतेन्द्र सिंह "नील"

Tuesday 1 October 2013

धरती पर चाँद

धरती पर चाँद

तू जिद्द ना मेरे खुदा 
मैंने तेरे सजदे में सर झुकाया हैं 

जीभर के दीदार कर लेने दे 
आज तू मेरा महबूब बनकर आया हैं


ये मेरी मोहब्बत का ही सिला हैं 
तेरे आते ही धरती पर चाँद उतर आया हैं 

झुक गया आसमाँ भी ज़मीं पर 
प्यार से तूने जो मुझे गले लगाया हैं 

मेरे अश्क बन गए हैं मोती 
 तेरी हथेली पर मेरे अश्क का कतरा जो आया हैं 

थाम ले मुझको अब तो अपनी बाहों में 
तू ही तो मेरा हमनवाज़ बनकर आया हैं

मुकम्मिल हो गया हूँ मैं तेरी पनाह में 
मेरे होटो पर जबसे तेरा नाम आया हैं 


जीतेन्द्र सिंह “नील”

Thursday 15 August 2013

तिरंगा हमारा

तिरंगा हमारा

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ये सरहद ही घर हमारा
ये देश हैं अभिमान हमारा

देश के लिए जीना और मरना
सुरक्षित रहे यह देश हमारा

हम मतवाले हैं हम दीवाने
देश पर मर मिटना  काम हमारा

हम हैं सीमा के सजग प्रहरी
अमन शांति से नाता हमारा

ना हम कायर ना हम कमजोर
सहनशीलता हैं गहना हमारा

तीन रंगों से सज़ा ये तिरंगा
आन बान शान  का प्रतिक हमारा

विश्व की कहलाये विजय पताका
हर दिल का अरमान तिरंगा हमारा

झुक ना सके किसी के सामने
ऊँचा रहे सदा तिरंगा हमारा

नील

Saturday 10 August 2013

तुम



तुम 
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एक नवयोवना सी तुम 
लगती प्यारी सुंदर  तुम 
तुम लगो गागर में सागर
अपने में सर्वगुण संपन्न तुम 

पवित्र निश्छल मन की तुम 
मेरे मन मंदिर में बसती तुम 
तुम लगो देवलोक की अप्सरा 
अप्रतिम सोन्दर्य की मूरत तुम 

कविता का श्रृंगार हो तुम 
शब्दों का अलंकार हो तुम 
तुम लगो शब्दकोष का भण्डार 
काव्य का अनुपम संसार तुम 

इठलाती नदियों की रवानी तुम 
हर मौजो की प्रेमकहानी तुम 
तुम लगो शिव की जटा से बहती जलधारा 
स्वर्गलोक से उतरी भागीरथ की गंगा तुम 

फूलो कलियों को महकाती तुम 
गुलशन की सुहानी बहार तुम 
तुम लगो फूलो का अमृत 
भंवरो के मन का प्यार तुम

" नील

Sunday 4 August 2013

दोस्त और दोस्ती





दोस्त और दोस्ती
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एक रिश्ता जो दिल में बसता हैं
दिल से बनाया हुआ
सबसे अलग , सबसे ज़ुदा
श्रीकृष्ण सुदामा सा
तेरी मेरी दोस्ती का
जग में सबसे निराला
ना खून का रिश्ता , ना नातो का बंधन
निभाते दिल से
यही तो कहलाये अपनी दोस्ती मित्रता , प्यार
सब बन्धनों से परे अनोखा प्यार
दोस्ती ना कोई खेल, ना व्यापार
ये तो दोस्तों का अदभुत  संसार
खिली खिली धुप सा ,
महकी महकी खुशबू सा
अहसास हैं इसमें अपनेपन का
ये सौगात हैं अनमोल हीरे सी
चमक जिसकी साल-दर-साल बढ़ती जाये
ये वो अमृत हैं जिससे
दिलो की नफ़रत मिट जाये
दोस्तों का प्यार , दोस्ती की दरकार
भगवान् को रूप बदल-बदलकर
बार बार धरती पर अवतार कराये
छल-कपट होता नहीं इसमें
जिसमे छल-कपट हो दोस्ती ना कहलाये
दोस्ती नाम ही जीवन में
खुशियों से दामन भर दे
सच्चा दोस्त मिलना हैं बहुत मुश्किल
मिल जाये तो जिंदगी और
जीने का तरीका बदल जाये
खुशनसीब हूँ मैं , बहुत ही खुशनसीब
मुझे इस जीवन में सच्चे दोस्त मिले
जाने क्या पूण्यकर्म थे मेरे
दोस्त के रूप में भगवान् मिले
वैसे तो जीवन में जिसको दोस्त मिल जाये
उसका हर दिन दोस्ती  के नाम होता हैं
मगर संसार ने आज के दिन को
मित्रता दिवस का नाम दिया हैं
तो आओ हम भी मनाये
मित्रता दिवस पर्व अपनी दोस्ती के नाम

नील

Saturday 3 August 2013

पहल

पहल
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आओ हम एक पहल करे
निरक्षरों को साक्षर करे
पढाये अपना बच्चा समझकर
उनका भविष्य उज्जवल करे

आओ हम एक पहल करे
दुखियों के दुख दूर करे
मन से उन्हें अपना समझकर
उनके सपने साकार करे

आओ हम एक पहल करे
पर्यावरण को स्वच्छ करे
प्रकृति को अपना घर समझकर
उसका पूरा रख-रखाव करे

आओ हम एक पहल करे
समाज से कुरीति दूर करे
बालविवाह ,दहेजप्रथा को रावन समझकर
उनका विनाश करे संहार करे

आओ हम एक पहल करे
नारी का मन से सम्मान करे
उसे सिर्फ भोग की वस्तु समझकर
उसकी इज्ज़त से कभी ना खिलवाड़ करे

आओ हम एक पहल करे
तन-मन से देश का उत्थान करे
उसे अपना आत्म-सम्मान समझकर
सारे जहाँ में उसका वर्चस्व कायम करे

नील

Friday 2 August 2013

एक अनजाना सफ़र



एक अनजाना सफ़र
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सूरज की पहली किरणे 
और निकल पड़ा मैं 
एक अनजाने सफ़र को
ना मंज़िल  का पता 
ना कोई साथी मेरा 
सुनसान राहे और 


ऊँचे ऊँचे पड़ो के बीच 
मेरे कदमो की आहट 

सन्नाटे को चीरती  
बार बार ये अहसास दिलाये 

मैं अकेला नहीं 
कोई तो हैं जो 
चल रहा मेरे साथ 
पर मैं जानता हूँ 
इस तनहा जीवन में 
कोई मेरा साथी नहीं शायद….
 यही मेरी तलाश हो
किसी को अपना साथी या
हमसफ़र बनाऊ
इस जीवन के सफ़र में
यही सोचते सोचते
ना जाने कहाँ चला जा रहा हूँ
इस अंतहीन सफ़र में
सूरज की पहली किरणों के साथ................

 नील 

Wednesday 3 April 2013

संवेदनाये

आज के इंसान की संवेदना
ना जाने कहाँ मर गयी
क्या हो गया हैं इंसान को
क्यूँ धन-दौलत की चाह में
अपनी संवेदनाओ को मार रहा हैं
जो कल तक हर किसी के सुख दुःख में
पूरी आत्मीयता से शामिल होता था
आज वही इंसान किसी को तडपता देख
उसकी और से मुह फेर रहा हैं
क्या वो इंसानियत को भूल गया हैं
क्या उसकी संवेदनाये रसातल में चली गयी
क्यूँ विमुख हो रहा हैं अपनी इंसानियत से
कहाँ खो गया उसका प्यारभरा अंतर्मन
क्यूँ मानवता को भूल हैवानियत अपना रहा हैं
हे ईश्वर की अनमोल की रचना अपना मन टटोल
जागृत कर अपनी सोयी संवेदनाये
मानव को मानव समझ छोड़ हैवानियत
कर परोपकार होगा तेरा मानव जाती पर उपकार

उसकी चाहत

उसकी चाहत
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चाहत मेरी
परवान चढ़ती रही
उसको पाने की तमन्ना
दिल में बढती रही
वो जितने पास हैं
मेरे दिल के
जिन्दगी से
उतने ही दूर हैं
उनकी ये दूरी
मेरी जान की दुश्मन
बन गयी
हर पल हर लम्हा
बस उसका ही
ख़याल रहता हैं
अब मुझे
होश कहाँ रहता हैं
खोया रहता हूँ
उसकी ही यादो में
उसकी ही बातो में
दुनिया से जैसे मेरा
नाता टूट गया
मेरी साँसे भी
उसका नाम ले ले
मुझे चिढाती हैं
हर धड़कन
उसकी याद दिलाती हैं
उसकी याद में
ये दिल हो गया शायराना
सुनकर मेरे गीत ग़ज़ल शेरो को
अब लोग मुझे
शायर दिल कहते हैं
ये मेरा दीवानापन कह लो
पागलपन कह लो
उसको मोहब्बत में
मैं खुदा कहता हूँ

नील

Saturday 16 March 2013

साँसों की सरगम





साँसों की सरगम



खनकती चूड़ियों की खन खन
जैसे तेरी साँसों की सरगम
मतवाला हो गया मेरा मन
सुनकर इनकी खन खन

छनकती पायलो की छन छन
जैसे झूमे नाचे धरती गगन
जिया मेरा भी हो गया मगन
सुनकर इनकी सुरीली छन छन

मनमोहक हैं तुम्हारे नयन
देख इनको जीना गये भूल
ये दिखाते हैं जीवन दर्पण
इन्ही से रोशन मेरा जीवन

जादुई हैं तुम्हारे कर-कमल
इनका स्पर्श हैं अमृत समान
स्पंदित करते सदा मुझमे प्राण
मुझको हैं इनपर अभिमान

करो  तुम प्यार से मेरा आलिंगन 
तुम्हारी दुरी अब नहीं होती सहन 
निष्प्राण ना हो जाए मेरा जीवन
तुम बन जाओ "नील" की धड़कन

"नील"

Saturday 9 March 2013

चलो आज सन्डे मनाते हैं


चलो आज सन्डे मनाते हैं
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बीते सप्ताह की थकान मिटाते हैं
चलो आज सन्डे मनाते हैं
टूट चुकी आशाओ को फिर से जागते हैं
चलो आज सन्डे मानते हैं
तेरी मेरी सबकी सुनते सुनाते हैं
चलो आज सन्डे मनाते हैं
घर के कुछ काम निपटाते हैं
चलो आज सन्डे मनाते हैं
रूठो को मानते हैं मिलकर उधम मचाते हैं
चलो आज सन्डे मनाते हैं
परिवार और दोस्तों संग घुमने चलते हैं
चलो आज सन्डे मनाते हैं
चलो आज हम सब मिलकर फनडे मानते हैं
चलो आज सन्डे मनाते हैं
 

नील  

Friday 8 March 2013

परिकल्पना

परिकल्पना


चाहत से अंजान  हैं वो मेरी

गीत ग़ज़ल कविता में मेरी
उनका ही नाम आता हैं
पढ़ती हैं वह जब रचना मेरी
वाह वाह कर खूब दाद दे जाती हैं

चेहरा मेरा शर्म से लाल हुआ जाता हैं
कौन हैं वह खुशनसीब, पूछकर चली जाती हैं

उसकी आँखों में जाने क्या कशिश हैं
दिल में प्यार का अहसास कराती हैं
जब भी होता हैं उससे सामना मेरा
वह नज़ारे झुकाकर चली जाती हैं

उसकी बातो में मेरा जिक्र होता हैं
तन्हाई में नाम मेरा गुनगुनाती हैं
मेरे खयालो में खोई-खोई रहती हैं
प्यार का इज़हार करने से कतराती हैं

मीठी हैं बोली उसकी जैसे मिश्री की डली
बातो से मुझे अपना बना जाती हैं

शर्म हया लाज़ उसके गहने हैं
भीड़ में भी शालीन नज़र आती हैं
सह्रदयता पहचान हैं हैं उसकी
यही अदा मुझे उसका दीवाना बना जाती हैं

"नील"
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