Wednesday 3 April 2013

संवेदनाये

आज के इंसान की संवेदना
ना जाने कहाँ मर गयी
क्या हो गया हैं इंसान को
क्यूँ धन-दौलत की चाह में
अपनी संवेदनाओ को मार रहा हैं
जो कल तक हर किसी के सुख दुःख में
पूरी आत्मीयता से शामिल होता था
आज वही इंसान किसी को तडपता देख
उसकी और से मुह फेर रहा हैं
क्या वो इंसानियत को भूल गया हैं
क्या उसकी संवेदनाये रसातल में चली गयी
क्यूँ विमुख हो रहा हैं अपनी इंसानियत से
कहाँ खो गया उसका प्यारभरा अंतर्मन
क्यूँ मानवता को भूल हैवानियत अपना रहा हैं
हे ईश्वर की अनमोल की रचना अपना मन टटोल
जागृत कर अपनी सोयी संवेदनाये
मानव को मानव समझ छोड़ हैवानियत
कर परोपकार होगा तेरा मानव जाती पर उपकार

1 comment:

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

ati sundar ..or samyik rachna .....samvednaye
क्यूँ विमुख हो रहा हैं अपनी इंसानियत से
कहाँ खो गया उसका प्यारभरा अंतर्मन
क्यूँ मानवता को भूल हैवानियत अपना रहा हैं
हे ईश्वर की अनमोल की रचना अपना मन टटोल
जागृत कर अपनी सोयी संवेदनाये
मानव को मानव समझ छोड़ हैवानियत
bilkul sahi jarurat hai apne andar soyi samvednao ko jagane ka taki samaj me vyapt visangtiyo ko dur kiya ja sake

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