Friday 2 August 2013

एक अनजाना सफ़र



एक अनजाना सफ़र
-------------------------


सूरज की पहली किरणे 
और निकल पड़ा मैं 
एक अनजाने सफ़र को
ना मंज़िल  का पता 
ना कोई साथी मेरा 
सुनसान राहे और 


ऊँचे ऊँचे पड़ो के बीच 
मेरे कदमो की आहट 

सन्नाटे को चीरती  
बार बार ये अहसास दिलाये 

मैं अकेला नहीं 
कोई तो हैं जो 
चल रहा मेरे साथ 
पर मैं जानता हूँ 
इस तनहा जीवन में 
कोई मेरा साथी नहीं शायद….
 यही मेरी तलाश हो
किसी को अपना साथी या
हमसफ़र बनाऊ
इस जीवन के सफ़र में
यही सोचते सोचते
ना जाने कहाँ चला जा रहा हूँ
इस अंतहीन सफ़र में
सूरज की पहली किरणों के साथ................

 नील 

3 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

जीवन का सफ़र अंतहीन ही तो है, बहुत सुंदर भाव.

रामराम.

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

वाह सुन्दर भावपूर्ण रचना ..बधाई @नील जी :) शुभकामनाये

Kailash Sharma said...

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति....शुभकामनायें!

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...