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सूरज की पहली किरणे
और निकल पड़ा मैं
एक अनजाने सफ़र को
ना मंज़िल का पता
ना कोई साथी मेरा
सुनसान राहे और
ऊँचे ऊँचे पड़ो के बीच
मेरे कदमो की आहट
सन्नाटे को चीरती
बार बार ये अहसास दिलाये
बार बार ये अहसास दिलाये
मैं अकेला नहीं
कोई तो हैं जो
चल रहा मेरे साथ
पर मैं जानता हूँ
इस तनहा जीवन में
कोई मेरा साथी नहीं शायद….
यही मेरी तलाश हो
किसी को अपना साथी या
हमसफ़र बनाऊ
इस जीवन के सफ़र में
यही सोचते सोचते
ना जाने कहाँ चला जा रहा हूँ
इस अंतहीन सफ़र में
सूरज की पहली किरणों के साथ................
नील
3 comments:
जीवन का सफ़र अंतहीन ही तो है, बहुत सुंदर भाव.
रामराम.
वाह सुन्दर भावपूर्ण रचना ..बधाई @नील जी :) शुभकामनाये
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति....शुभकामनायें!
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