यादो के दरख़्त
कुछ यादो के दरख़्त
आज भी ठंडी हवा दे रहे हैं
सूना रहे हैं तेरा नाम
ले लेकर ठंडी आहे
कुछ सूखे पत्ते
आज भी उससे जुड़े हैं
उनकी सरसराहट से
जिंदगी के विरानेपन का
अहसास हो रहा हैं
उन दरख्तों से सूखकर टूटती
शाखाओं की चरचराहट
आज भी दिल को
अंदर तक ज़ख़्मी कर रही हैं
याद दिला रही हैं बीते हुए
प्यार भरे दिनों की
जो हमने साथ मिलकर बिताये थे
अब उन यादो के दरख्त
सूखकर बियावान जंगल
बनते जा रहे हैं
आज भी ठंडी हवा दे रहे हैं
सूना रहे हैं तेरा नाम
ले लेकर ठंडी आहे
कुछ सूखे पत्ते
आज भी उससे जुड़े हैं
उनकी सरसराहट से
जिंदगी के विरानेपन का
अहसास हो रहा हैं
उन दरख्तों से सूखकर टूटती
शाखाओं की चरचराहट
आज भी दिल को
अंदर तक ज़ख़्मी कर रही हैं
याद दिला रही हैं बीते हुए
प्यार भरे दिनों की
जो हमने साथ मिलकर बिताये थे
अब उन यादो के दरख्त
सूखकर बियावान जंगल
बनते जा रहे हैं
उन जंगल में
मैं तन्हा अकेला
अपनी यादो के साथ
जाने कहाँ चला जा रहा हूँ
एक अनजानी तलाश में
जहाँ मेरा साया भी साथ
छोड़ गया ……।
जीतेन्द्र सिंह "नील"
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